बुधवार, सितंबर 06, 2017

काला रंग और हंसमुख चेहरा याने कि मास्साब की नजर में

शिक्षक दिवस आता है तो कुछ शिक्षक अनायास ही याद हो आते हैं. पत्नी तो खैर कभी याद से जाती नहीं, तो याद आने की कोइ वजह नहीं है वरना तो जितने लेक्चर उससे सुने हैं उसके सामने तो जीवन में मिले सारे मास्साबों के लेक्चर भी कम पड़ें.  
हमारे स्कूल में एक कुट्टिय्या स्वामी मास्साब थे. उनका नाम यूँ तो आर के शास्त्री था मगर जिस बेरहमी से वो बच्चों की कुटाई किया करते थे, उसके चलते न जाने कब कौन उनका नामकरण कुट्टिय्या स्वामी कर गया. बैच दर बैच उन्हें अनऑफिसियली आपसी बातचीत में इसी नाम से संबोधित करता रहा. शायद उनको पता भी न रहा हो.
बात बात पर बांस की बेंत से छात्रों को तब तक कूटते, जब तक कि बन्दा न टूट जाये या बेंत न टूट जाये. हालांकि हम पढ़ाई में इतने बड़े गणेश भी न थे कि रोज कूटे जायें. कालांतर में चार्टड एकाउन्टेन्ट बने ही याने कुछ तो चिकने पात रहे ही होंगें वरना होनहार कैसे निकलते?
मगर कुट्टिय्या स्वामी से नियमित पिटने का आंकलन जब कभी करते तो पाते कि इसमें कहीं न कहीं पढ़ाई को छोड़ कर कोई और वजह भी है. उस वक्त जो आंकलन किया तो लगा कि हो न हो कहीं न कहीं हमारा श्याम वर्ण इसके लिए कुछ हद तक जिम्मेदार है. काला रंग यूँ भी शक के दायरे में रहता है फिर भले ही वो इंसान का हो या धन का.
एक गोरा कुछ कहे और एक काला कुछ कहे तो गोरे का कहा ही सच प्रतीत होता है. मजाक नहीं है. इसे जिया है तब यह ब्रह्म सूत्र हस्ताक्षरित कर रहे हैं हम..
एक तो काला रंग और उस पर हंसमुख मुस्करता चेहरा याने कि मास्साब की नजर में करेला और नीम चढ़ा. मास्साब जब कूटने को शिकार तलाशते और उनकी नजर हमारी नजर से मिलती तो वह समझते कि हम उनको चिढ़ा रहे हैं..तुरंत कहते हो न हो तुमने ही यह बदमाशी की होगी....खड़े हो जाओ.
ईश्वर जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है मगर जब लेता है तब भी पूरी दुर्गति करके ही छोड़ता है.
हमारी हाईट ही ऐसी दी कि खड़े थे मगर मास्साब कहते रहे कि खड़े हो जाओ..वो समझते कि हम बैठे हैं. जब हम कहते कि खड़े तो हैं ..अब और कितना खड़े हो जायें तो उनके गुस्से में यह बात मानों हवन सामग्री से दी गई आहूति का काम करती और फिर उनकी बांस की बेंत और हमारा कोमल शरीर...आपस में बातें करने लगते कि तुम न होतीं तो ऐसा होता..तुम न होती तो कैसा होता..
हालात के आंकलन ने ये भी सुझाया कि रंग, मुस्कान से ऊपर आपसी लेन देन और संपर्क के भाव में भी हम खरे न उतरे थे वरना ये दोनों कमियाँ दर किनार हो जाती. हमसे भूल यही हो रही थी कि हम उनसे ट्य़ूशन पढ़ने नहीं जा रहे थे उनके घर... शायद यही सबसे बड़ा कारण था कि हम रंग भेद और खुश रहने की सजा पाते रहे.
बचपन से कवि हृदय रहे और लोगों को प्रोत्साहित करने में सबसे आगे जो आज भी जारी है टिप्पणियों में वाह वाही के माध्यम से...इस हेतु भी अगर आप पिट जायें तो इसे काल चक्र की क्रूरता के सिवाय और क्या संज्ञा दी जा सकती है?
हुआ यूँ कि गुरु जी मैथली शरण गुप्त की पंचवटी पढ़ा रहे थे. उन्होंने पढ़ा:
चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,

स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
हम कवि मना..तुरंत बिन प्रयास अनायास कह उठे...वाह वाह...एक बार फिर से पढ़िये...बहुत खूब...
अब इसमें क्या गलत है आप बताओ मगर कुट्टिय्या स्वामी..उनको तो कूटने के लिए शिकार चाहिये..ऐसा कूटा ऐसा कूटा कि अगले तीन दिन ईश्वर प्रद्दत बैठकी इस काबिल न बची कि बैठ पायें. बिना सुनाये क्लास में खड़े रहने की सजा काटते रहे...
जब कभी शिक्षक दिवस पड़ता..छात्र अपने अपने प्रिय शिक्षकों को नमन करते..याद करते और हम कुट्टिय्या स्वामी को स्कूल का मोड़ आने के पहले से ही शाष्टांग करने लगते थे मन ही मन...मगर उनकी क्षोब की दूरबीन थी कि कोई और धराये न धराये, हम धरा ही जाते थे नियम से .. फिर हमने भी अपने धराये जाने को नियति मान कर स्वीकार कर लिया था...तब से कूटे जाने की तकलीफ कम हो गई...हालांकि कूटे उतना ही जाते थे...
शायद गरीब किसान भी ऐसे ही जीता होगा सरकारी मार खा खा कर हिन्दुस्तान में उसे अपनी नियति मान!! एक हिन्दुस्तानी का नियति पर भरोसा कर जीवन गुजार देना यूँ ही नहीं होता..सभी हमारी तरह अनुभव से कहीं न कहीं अलग अलग तरह से गुजरते हैं तो हिन्दुस्तान बनता है!!
इस शिक्षक दिवस पर हिन्दुस्तान को सलाम..जिसने वो शिक्षा दी है कि अब कोई पाठ कठिन नजर नहीं आता!!

-समीर लाल समीर
भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे के सितम्बर ०७,२०१७ में प्रकाशित
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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5 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (07-09-2017) को "सत्यमेव जयते" (चर्चा अंक 2721) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-09-2017) को "सत्यमेव जयते" (चर्चा अंक 2721) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’नीरजा - हीरोइन ऑफ हाईजैक और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Bahut khub!bahut bahut badhai aapko.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

स्कूल के शिक्षकों की याद ताजा हो गयी